उज्जैन के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य में भी पहले बताया था यज्ञ से समाधान, देशभर में चल रहे प्रयोग
उज्जैन. दुनियां भर में नोवल कोराना वायरस (Coronavirus disease (COVID-19)) कहर बन टूट चुका है। चीन सहित कई देशों की आर्थिक कमर टूट गई है। साथ ही भारत में भी उक्त बीमारी को अपादा घोषित कर दिया गया है और अर्लट जारी हो गए। इस बीमारी से उपचार के लिए देशभर के मेडिकल साइंस व रिसर्च से जुड़े लोग दवाई इजाद करने लगे है, लेकिन उक्त बीमारी के आने के साथ भारतीय आयुर्वेद व प्राचीन परंपरा से जुड़े लोगों ने उक्त समस्या का समाधान यज्ञ व्यवस्था में बता दिया था। यज्ञ के माध्यम से वायु और जल की शुद्धि कर वायरस लगाम लगाई जा सकती है। हालांकि भारत के विभिन्न शहरों में कोराना के कहर से बचने के लिए यज्ञ शुरू हो गए, लेकिन यज्ञ के दावों पर अब साइंस के मुहर लगाने बात सामने आ रही है।
उज्जैन से शुरू हुआ था यज्ञ का दावा
कोरोना के भारत में प्रवेश के साथ ही विभिन्न जागरूकता और बचाव निर्देश शुरू हो गए। इसी के साथ शुरू हुई यज्ञ से बचाव की बात। उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय (vikram university) के संस्कृत, वेद, ज्योर्तिविज्ञान अध्ययनशाला के विभागध्यक्ष डॉ. राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर (rajeshwarshastri.musalgaonkar) ने कोरोना के बचाव के लिए यज्ञ व्यवस्था को तत्काल अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि कोरोना से बचने का शाश्वत प्रयोग -प्रत्येक नगर में हवनकुण्ड बनाएँ जाय। हवन सामग्री में गाय के गोबर के कण्डे , कालीमिर्च, लोंग, जायपत्री, दालचीनी, पत्थरफूल, तेजपात , नीम के पत्ते, बिल्वपत्र , हल्दी, छोटी- बडी इलायची, सरसों, रक्तचन्दन, अभया, धात्रीफल, गूगल, नागकेशर, गोमूत्र का प्रयोग किए जाएं। इस सामग्री से होम करें। अग्नि प्रज्वलित (धूम अपेक्षित) न हो। इसी के साथ यज्ञ का दावा फैलने लगा। पिछले कई दिनों से देशभर में लगातार यज्ञ हो रहे है।
अग्निहोत्र यज्ञ पर सालों से शोध
महेश्वर स्थित फाइवफोल्ड पाथ मिशन, होम थैरेपी गौशाला में कई वर्षों से अग्निहोत्र यज्ञ पर शोध किया जा रहा है। इस रिसर्च में सामने आया है कि अग्निहोत्र यज्ञ के बाद जल में बैक्टीरिया की कमी हुई। साथ ही पानी की कठोरता भी कम हो गई। इसके माध्यम से पानी में रसायनिक प्रभाव को भी कम किया गया। वहीं नदी के अन्य शहरों में, जहां अग्निहोत्र नहीं किया गया था, वहां जल में कोई परिवर्तन नहीं आया। यह शोध वर्ष 2014-15 में जर्मन वैज्ञानिक अलरिच बर्क और धामनोद कॉलेज के प्रिसिंपल शैलेंद्र शर्मा ने किया था।