रिश्तों में खाया ऐसा धोखा कि एक इंजीनियर बन गया एडवोकेट, अब कर रहा दूसरे लोगों की मदद
उज्जैन. भारत में हर कानून उसके दुरूपयोग के चलते सवालों में आ जाता है। कुछ ऐसा ही हाल हैं, महिला सुरक्षा के लिए बने कानूनों का। आज अगर दहेज व पारिवारिक विवादों के प्रकणों में नजर डालेंगे। तो अधिकांश में महिला परिवार और रिश्तों के महत्व को हल्का कर मनमानी करती है और ऐसा नहीं होने पर प्रकरण दायर कर देती है। कुछ परिवार ऐसे कानूनी दांवपेच में उलझने की जगह अलग रास्ते (बेटे-बहू से अलग) अपनाते है। ऐसे में एक पुरूष की समस्याओं से जूझना पड़ता है, लेकिन एक इंजीनियर युवक ने अपनी पत्नी की मनमानी को दरकिनार कर उसे सबक सिखाया। उससे संबंध विच्छेद किए और अपने परिवार का ध्यान रखा। इस प्रकरण में बड़ी बात यह है कि उस इंजीनियर ने खुद का केस भी लड़ा।
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यह है नंबर
पत्नी द्वारा लगाए झूठे केस और प्रकरणों से परेशान है या आशंका में है वह अंकुर के अंतरराष्ट्रीय टोल फ्री नंबर 882498498 पर सम्पर्क कर सकते हैं। साप्ताहिक मीटिंग में आकर नि:शुल्क विधिक सहायता का फायदा ले सकते हैं।
एक साल में छोड़ दिया था ससुराल
उज्जैन निवासी अंकुर सीरौटिया का विवाह 2013 में उज्जैन नगर निगम में सहायक संपत्तिकर अधिकारी (वर्तमान में रिटायर्ड) राजेन्द्र शर्मा की बेटी रुचि से हुआ था। करीब 11 माह रहने के बाद दोनों अलग हुए। इसके बाद रूचि ने महिला थाना में दहेज प्रकरण दायर किया। महिला थाने ने दोनों पक्षों को सुना तो आधारहीन आरोपों के कारण कार्यवाही निरस्त कर दी गयी। इसके बाद रूचि ने 2016 में बदले की भावना से, भरणपोषण का दावा। यहां भी अंकुर ने केस की खुद पैरवी की।
केस कमजोर देखा, तो साथ आने को तैयार
न्यायालय में खुद का केस कमजोर होता देखकर रुचि ने एक बार फिर पति के साथ रहने के लिए याचिका दायर कर दी। वह याचिका लगाकर न्यायालय के समक्ष सहानुभूति हासिल करने में असफल रही। यह भी वह असफल रही।
फिर पहुंची हाईकोर्ट, मांगे 35 लाख
कुटुंब न्यायालय से केस हारने के बाद रूचि ने हाईकोर्ट का रास्ता अपनाया। यहां उसने करीब 35 लाख रूपए एलिमनी मांगी या फिर साथ रखने की बात कहीं। यहां भी लंबा केस चला, लेकिन युवती को निराशा ही हाथ लगी। अंकुर ने न्यायालय में साबित कर दिया कि पत्नी क्षण प्रतिक्षण विविध मानसिकता, उसने संबंधों का अनादर किया, पति को वैवाहिक सुखों से वंचित रखना सिद्ध पाया, पति को बगैर किसी युक्तियुक्त कारण के 2 वर्षों से अधिक समय तक परित्याग करना सिद्ध पाया। उपरोक्त बिंदुओं को क्रूरता के अंतर्गत मानते हुए हाइकोर्ट की डिवीजन बैंच द्वारा पति को विवाह विच्छेद पाने का अधिकारी पाया गया और पत्नी के किसी भी तरह की एलिमनी की मांग खारिज कर दी।
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